खोरी अपडेट (109)
02-04-2022
जिंदाबाद दोस्तों
आज के खोरी अपडेट में सर्वोच्च न्यायालय में पीएलपीए कानून पर बहस पूरी व खोरी गांव की जमीन की स्थिति आदेश के बाद ही मालूम पड़ेगी। 1027 पात्र विस्थापितों को आर्थिक सहायता फ्लैट मिलने तक मिलेगी।
31 मार्च को पीएलपीए यानी जंगल कानून पर सारे वकीलों की बहस पूरी हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने पीएलपीए कानून पर अपना फैसला बाद में सुनाएगा। फैसले के बाद ही मालूम हो पाएगा कि कौन सी जमीन जंगल की होगी या नहीं। और पीएलपीए क्या बदलाव किया जा सकता है क्या नहीं?
31 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय में ख़ोरी गांव संबंधी हमारे ” रेखा, पिंकी व पुष्पा बनाम भारत सरकार” वाले मुकदमे की बात कहेंगे। यह बात ही ना अखबारों में आती है ना किसी प्रेस नोट में।
यंहा हम आपको आदेश समझने वाली भाषा में बता रहे हैं। यदि किसी शब्द में अंतर हो तो अदालत का आदेश साथ में भेज रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने लोगों के सामने आने वाली कठोर परिस्थितियों और उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन सहित जमीनी स्तर पर हो रही घटनाओं के बारे में अदालत को जानकारी दी। उन्होंने तर्क दिया कि जबरन बेदखल किये खोरी निवासियों को समुचित रूप से बसाना जाना समय की मांग है।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि हमारी केस के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख जी के अलावा अन्य किसी की ओर से कोई और वकील ने खोरी गांव के बारे में एक शब्द भी अदालत में नहीं कहा।
मुकदमे के आदेश में लिखा है की पारीख जी ने तीन मुद्दे उठाए:—-
1- पेयजल, जल निकासी और बिजली की सुविधा वाले फ्लैट कब तक बनकर तैयार होंगे?
2- फ्लैट आवंटन का अंतिम ड्रा कब होगा?
3-अगर यह माननीय न्यायालय इस बात को माने कि पीएलपीए भूमि वास्तव में वन नहीं है, तो हरियाणा सरकार के झूठे और भ्रामक बयान के आधार पर की गई ख़ोरी वासियों की बेदखली वापिस करनी होगी।
और पुनर्स्थापन, स्वस्थानी पुनर्वास और उनके संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजा मिलना चाहिए। व्यक्तियों के कानूनी दावों और तर्कों पर विचार करते हुए इंसीटू पुनर्वास निर्धारण करना होगा।
कोर्ट का कहना है:
• डबुआ में फ्लैटों की स्थिति को सत्यापित करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर को जमीन पर भेजा जाएगा।
• जबरन बेदखल किए गए लोगों को डबुआ कॉलोनी में रहने योग्य आवास दिए जाने की जरूरत है। वे अपनी मर्जी से बाहर खुले में नहीं रह रहे हैं, बल्कि मजबूर हैं। “वे ऐसी स्थिति के कारण बाहर रह रहे हैं जिसे आप ठीक नहीं कर रहे हैं”
• 21 अप्रैल 2022 तक फ्लैटों को रहने योग्य बनाने की जरूरत है। कोर्ट का कहना है, “यह काफी समय है।”
• 1027 पात्र व्यक्तियों को 21 अप्रैल, 2022 तक स्थायी आवंटन प्रदान करने की आवश्यकता है। जब तक पात्र व्यक्तियों को फ्लैट नहीं दिए जाते, तब तक 2000 प्रति माह की दर से भुगतान करना होगा।
• कब्जा पत्र नगर आयुक्त द्वारा यह प्रमाणित करने के बाद ही दिया जा सकता है कि फ्लैट रहने योग्य स्थिति में हैं।
• “स्थानीय लोगों द्वारा कोई अतिक्रमण की अनुमति नहीं है”, अदालत ने कहा की पुलिस कमिश्नर और नगर निगम फरीदाबाद कमिश्नर को इस बात के आदेश दिए जाते हैं कि जिस जमीन पर से कब्जा हटाया गया उसका कोई दुरुपयोग ना हो और जो दुरुपयोग हुआ है हो रहा है तो उसको हटाने के लिए पुलिस का साथ लिया जाए।
• वन विभाग के सचिव वृक्षारोपण की सुविधा के लिए उचित निर्देश जारी कर सकते हैं।
और मुख्य बात आदेश के अंत में है। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख जी ने प्रश्न उठाया था कि खोरी गांव की जमीन जंगल जमीन में आती है या नहीं? उसका फैसला पीएलपीए वाले मुकदमे के फैसले के बाद तय किया जाएगा।
हम मानते हैं कि यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है। इस बात से यह स्पष्ट हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय से पीएलपीए जंगल कानून के बारे में जो भी आदेश आएगा उसे खोरी गांव के निवासियों के भविष्य का फैसला जुड़ा है।
आगे की जानकारी के लिए पढ़ते रहिये, सुनते रहिए ख़ोरी अपडेट।
खोरी गांव के साथ और सहयोग में
टीम साथी