ग्रामीणों की माने तो पहले सुबह-शाम पक्षियों की चहचाहट से आसपास गुलजार रहता था. लेकिन डंपिंग ग्राउंड बनने के बाद से वे गायब होते गए
बसंत कुमार | आयुष तिवारी | न्यूज़लॉन्ड्री

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ऐसी कहानी सिर्फ रावत ही नहीं सुनाते बल्कि गांव का हर दूसरा शख्स सुनाता है. दरअसल 2013 में बांधवारी गांव से महज दो किलोमीटर दूर भंडारी गांव में सरकार ने कूड़ा डालने का फैसला किया. अब यह पहाड़ का रूप ले चुका है. रावत पेशे से ट्रक ड्राइवर रहे हैं. शुरूआती दिनों में वे भी इस डंपिंग ग्राउंड में अपने ट्रक से कूड़ा डालने का काम करते थे लेकिन बाद में छोड़ दिया.
गुरुग्राम नगर निगम द्वारा संचालित बांधवाड़ी डंपिंग ग्राउंड में प्रतिदिन 2,000 मीट्रिक टन ताजा कचरा गुरुग्राम और फरीदाबाद से आता है. पिछले आठ वर्षों में इसमें 27 लाख टन से अधिक कचरा एकत्र हुआ जिस कारण इसकी ऊंचाई जमीन से 40 मीटर हो गई है.
मीडिया रिपोर्टस की मानें तो साल 2019 में नाराज एनजीटी ने गुरुग्राम नगर निगम को बांधवाड़ी लैंडफिल से अगले छह महीने में 25 लाख टन कचरा हटाने का आदेश दिया था. तब एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था, ‘‘अगर आदेश का पालन नहीं किया गया तो कड़े कदम उठाए जाएंगे यहां तक कि निगम अधिकारियों की सैलरी भी रोकी जा सकती है.’’
शायद सैलरी कटने के डर से निगम अधिकारियों की आंखें दूषित हवा में सांस लेने, गंदे पानी के लिए खर्च करने और बीमारियों के डर के साए में जीने वालों को लेकर खुल जाएंगी.
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