खोरी : कब्जेदार नहीं मालिकों को उजाड़ा

नगर निगम सर्वोच्च न्यायालय के 7 जून, 2021 के आदेश का पालन दिखाकर खोरी गांव के लोगों को कब्जेदार का झूठा नाम देकर, उनकी खरीदी हुई जमीन पर मेहनत से खड़े किए गए मकानों और उनकी संपत्ति को जमीदोज करता गया। लोगों को गरीब बनाने में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पूरा इस्तेमाल किया गया।

विमल भाई I मजदूर मोर्चा

मूल लेख यहां पढ़ें

अंश:

सर्वोच्च न्यायालय अपने आदेश में बार-बार कहता रहा कि जंगल की जमीन से पहले सब को हटाना चाहिए अफसोस की बात यह है कि 7 जून 2021 के पहले किसी भी मुकदमे में इस बात को नहीं उठाया गया कि यह जमीन जंगल की है भी या नहीं? दूसरा खोरी गांव को झुग्गी बस्ती स्वीकार कर लिया था। जो कि तथ्यात्मक रूप से ही गलत है। जबकि मामला बिल्कुल अलग है जैसे फार्म हाउस की जमीन अभी तय नहीं है कि वह पीएलपीए जमीन है भी या नहीं? इसी तरह खोरी गांव भी तय नहीं है कि वह पीएलपीए की जमीन पर है या नहीं? पूरा खोरी गांव, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमाफिया द्वारा मेहनतकश गरीब मजदूरों को बेची गई जमीन पर बसा है। मगर इस भू माफिया के खिलाफ जांच में तेजी नहीं है। एक भी व्यक्ति अभी तक गिरफ्तार नहीं है। वह मामला ठंडा पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय व बड़े राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर बिल्कुल चुप हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश ने काले चोगे में ढके हाथ से, काली स्याही से लोगों की अब तक की जिंदगी काली रात में तब्दील की है। अब प्रश्न यह है कि माननीय न्यायाधीश क्यों एकमात्र खोरी गांव के लोगों को बिना सर्वे, बिना कोई सहायता दिए उजाड़ कर बिखेर दिए जाने के जघन्य अपराध पर जांच करते? पीएलपीए पर बसे अन्य 122 इलाकों की तरह मुद्दा तय होने तक खोरी गांव के लोगों को ना उजड़ा जाए।