On World Homeless day, Update 10 October 2021

विश्व घरविहीन दिवस पर

10-10-2921

जिंदाबाद साथियों 

आज के ख़ोरी अपडेट में हम बताएंगे कि ख़ोरी में उजड़े लोगों ने आज “विश्वघर विहीन दिवस” मनाया। उन्होंने पूरे जोर-शोर से यह बात कही। वो क्या बात कही, हम आपको बताते हैं।

हम खोरी गांव से उजड़े लोग आज 10 अक्टूबर, 2021 को विश्व घरविहीन दिवस पर बहुत गहरे अवसाद से जूझ रहे है। 

आज दुनिया भर में, भारत में अपने घरों से उजड़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारे हरियाणा राज्य के खासकर फरीदाबाद जिले में हम एक जंगल कानून के तहत उजाड़ दिए गए हैं। 

उजाड़ने से पहले सरकार ने कोई हमारा कोई सर्वे नहीं किया। दुनिया भर में जब कोरोना के आतंक का सामना करने के लिए राजनीतिज्ञ, प्रशासन, न्यायपालिका व स्वास्थ्य कर्मी आदि कटिबद्ध दिखाई दे रहे थे। तब हमारे खोरी गांव में हजारों परिवारों को इसका सामना करने के लिए ऐसे ही छोड़ दिया गया था। हमारा कोई कोरोना टेस्ट नहीं हुआ। ना उस बीमारी से लड़ने के लिए कोई सहूलियत दी गई। 

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश 7 जून के बाद 14 जुलाई तक आतंक के साए में हमने लाठियां खाई जेले भुगती और फिर  मेहनत मजदूरी के पैसों से जमीन खरीद कर बनाए गए घरों को टूटते हुए देखा। फिर हम बेघर हो गए। अब किराए के भी पैसे नहीं और पुनर्वास भी नहीं।

हमने सरकारी नीतियों को इन्हीं पूजीपतियों के सामने झुकते हुए देखा है।

सरकार पैसों में बरसो पुराने कबाड़ फ्लैट हमको बेचना चाहती है। हमारा घरेलू सामान भी ज्यादातर बिखर गया। टूट गया। खराब हुआ। मगर हम मजदूर हैं हमारा एक ही जाति धर्म बचा है। वह है मेहनतकश ।

खोरी गांव में हिंदू, मुस्लिम, सिख व ईसाई अपने धार्मिक स्थलों, अपनी आस्थाओं, आपसी प्रेम व्यवहार और मनमुटाव के भी साथ, मेहनत करके जिंदा रहे हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में हमारी आवाज उठाने वाली वकीलों और समूहो के प्रति हम जिंदाबाद कहते हैं। उन लोगों को जिंदाबाद कहते हैं जो हमारे आशियाने के लिए लड़ रहे है। जिन्होंने हमारी पीड़ा को समझा। जो घर टूटने से लेकर अब तक भी हमारे साथ खड़े हैं। 

हम आर्थिक रूप से बहुत कमजोर रहे हैं। मगर हम गरीब नहीं कहा जाए। हमारे पास वह संपत्ति है जिसे कोई नहीं छीन सकता और वह है हमारा मनोबल ।

इस पूरे उजाड़ में, सर्दी गर्मी बारिश के  मौसम के बीच,  भूखे रहकर भी सिर्फ कोरोना नही बल्कि और भी अनेक बीमारियों से लड़ते हुए हम हम जिंदा है।

हमको झुग्गी झोपड़ी वाला कहकर, हमारे खरीदे हुए घर तोड़े गए, ऐसे शब्दों के खेल से हमें हमें नीचे गिराया गया और भी अनेक निचले नामों का हम पर ठप्पा लगाया गया। हमने शांति से सब झेला है। 

हम मानते हैं कि पूँजीपतियों द्वारा बड़े-बड़े गोल्फ कोर्स होटलों के बीच हमें अपने आशियाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। हम इसके लिए तैयार हैं।

हमसे बहुत कुछ छीना गया है। हम जानते कि हम दुनिया के उस वर्ग से है जिसने देश दुनिया को रहने लायक बनाया है। और बनने के बाद हमको ही हटाया है।

हमें भरोसा है अपने मनोबल पर, अपनी सच्चाई पर, अपनी आंतरिक ताकत पर। 

हम निराश नहीं है, हम फिर फिर उभरेंगे, अपने होने का एहसास दुनिया में जिंदा रखेंगे। अभी पता नहीं की कितनी बार हमारी छत हटाई जाएगी या छीनी जाएगी।

हम फिर एक नई छत बनाएंगे।  बिना किसी शिकायत के, इस दुनिया को सबके रहने लायक बनायेंगे। 

दुनिया के मेहनतकशो,  बेघरबारो के लिए को हम अपनी यही आशा देते हैं। हिम्मत देते हैं।

आइए हम सब मिलकर के नए आशियाने को बनाएं। 

जिंदाबाद