पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट तौर पर यह कहने के बावजूद कि खोरी गांव के रहवासियों को बिना पुनर्वास किए बेदख़ल नहीं किया जा सकता, हरियाणा सरकार ने यहां की बस्ती के घरों को तोड़ डाला.
मंजू मेनन | चौधरी अली ज़िया कबीर | मूल अंग्रेज़ी लेख से निधि अग्रवाल द्वारा अनूदित | द वायर

मूल लेख यहां पढ़ें
अंश: दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर फरीदाबाद के खोरी गांव के लगभग एक लाख लोगों को जबरन बेदखल किए जाने का सामना करना पड़ा. उन्हें बार-बार ‘वन अतिक्रमण करने वाला’ बताया जाता रहा है. इस लेख में हम खोरी गांव के दो महत्वपूर्ण मामलों को परखेंगे, जो यह दर्शाते हैं कि सामूहिक रूप से निवासियों की बेदखली को हरियाणा सरकार कानून की अनुपालना के रूप में पेश नहीं कर सकती. चाहे बस्ती का वन भूमि के संदर्भ में कोई भी कानूनी दर्ज़ा क्यों न हो, खोरी गांव के निवासियों को कानूनन आवास का अधिकार है.
न्यायालय और नगर निगम महामारी के इस समय में हज़ारों परिवारों को इस तरह अमानवीय और पूरी तरह से गैर कानूनी तरीके से बेदखल करने की परिकल्पना कर रहे हैं, जब कि उनके पास जाने के लिए कोई दूसरा घर नहीं है और वे कहीं जा भी नहीं सकते क्योंकि भारत में महामारी की तीसरी लहर के डर के कारण, उन्हें कोई जगह स्वीकार नहीं करेगी.
हरियाणा सरकार अच्छी तरह से जानती है कि उसने निवासियों और न्यायालयों के साथ चालाकी की है. अब उसे खोरी के निवासियों के साथ लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष से हटकर कानूनी रूप से उनके लिए उचित पुनर्वास का प्रबंध करना चाहिए.
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